Hartalika Teej Vrat 2025: सुहागिनों संग अविवाहित कन्याओं के लिए भी शुभ व्रत है हरितालिका तीज
Hartalika Teej Vrat 2025: हरितालिका तीज 2025 का व्रत 26 अगस्त को भाद्रपद शुक्ल तृतीया पर रखा जाएगा. सुहागिन महिलाएं पति की लंबी उम्र और अखंड सौभाग्य के लिए यह व्रत करती हैं, वहीं अविवाहित कन्याएं मनचाहे जीवनसाथी की प्राप्ति हेतु उपवास रखती हैं. यह व्रत शिव-पार्वती पूजा का पावन अवसर है. The post Hartalika Teej Vrat 2025: सुहागिनों संग अविवाहित कन्याओं के लिए भी शुभ व्रत है हरितालिका तीज appeared first on Prabhat Khabar.

Hartalika Teej Vrat 2025: आने वाले 26 अगस्त को भाद्रपद शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि पर सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए हरितालिका तीज का व्रत करेंगी. यह व्रत बिहारी, नेपाली, मराठी और जायसवाल समाज की महिलाओं में विशेष रूप से लोकप्रिय है. समाज भिन्न-भिन्न परंपराओं का पालन करते हैं, लेकिन सभी का उद्देश्य एक ही होता है—भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा कर दांपत्य जीवन में सुख और समृद्धि की कामना करना.
सुहागिनों के साथ कन्याएं भी रखती हैं व्रत
मराठी समाज की मान्यता है कि जिस तरह माता पार्वती ने कठोर तपस्या और निर्जला उपवास करके भगवान शिव को अपने पति रूप में प्राप्त किया था, उसी तरह अविवाहित कन्याएं भी अपने मनचाहे जीवनसाथी की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं. सुहागन महिलाएं विवाह के बाद भी इस व्रत का पालन करती हैं ताकि उनका दांपत्य जीवन सुरक्षित रहे और अगले जन्मों में भी वही पति प्राप्त हो.
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छत्तीसगढ़ की ‘करू भात’ परंपरा
छत्तीसगढ़ी समाज की महिलाएं तीज से एक दिन पहले ‘करू भात’ की परंपरा निभाती हैं. इस दिन वे स्नान करके पैरों में आलता लगाती हैं, पूजन करती हैं और करेले की सब्जी, भुजिया, चावल-दाल व पकौड़ी जैसे व्यंजन बनाकर भोजन करती हैं. मान्यता है कि शाकाहारी और सात्विक भोजन से ही अगले दिन के व्रत की शुद्ध शुरुआत होती है.
मिथिला में चौरचन व्रत का महत्व
इसी दिन मिथिला क्षेत्र में ‘चौरचन व्रत’ भी मनाया जाता है, जिसे चौठचंद्र के नाम से भी जाना जाता है. शाम को चंद्रमा की पूजा कर महिलाएं और परिवारजन मंगलकामना करते हैं. मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा की आराधना करने से इच्छाएं पूरी होती हैं और मिथ्या कलंक से रक्षा होती है.
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार, एक बार भगवान गणेश अपने वाहन मूषक पर सवार होकर जा रहे थे. अचानक मूषक ठोकर खाकर गिर पड़ा और गणेश जी भी नीचे गिर गए. यह देखकर चंद्रमा हंस पड़े. इससे गणेश जी क्रोधित हुए और चंद्रमा को श्राप दिया कि उनका स्वरूप कलंकित होगा और जो कोई इस दिन चंद्रमा को देखेगा, वह भी मिथ्या कलंक का भागी होगा. बाद में चंद्रमा ने क्षमा मांगी, तब गणेश जी ने कहा कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को यदि कोई भक्त श्रद्धा से चंद्रमा की पूजा करेगा, तो उस पर कोई दोष नहीं लगेगा.
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